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भगवान राम को कुटिया के तरफ आते देख भाव विभोर हुई माता सबरी।




संजय कुमार चौरसिया ब्यूरो रिपोर्ट बस्ती। 


कलवारी - बहादुरपुर ब्लाक क्षेत्र के शिव मंदिर खखोड़ा में शनिवार की रात आदर्श रामलीला समिति के कलाकरों ने सीता हरण, जटायू उद्धार, शबरी आश्रम, राम सुग्रीव मित्रता व बालि वध की लीला का मंचन किया। कलाकारों ने दिखाया कि पंचवटी पंहुचे राम, सीता व लक्ष्मण वहां कुटी बनाकर रहने लगे। रावण की बहन शूपर्णखा पंचवटी सैर के दौरान राम को देख मोहित हो गयी। उनके साथ शादी करने की इच्छा के साथ कुटी में पहुँच गयी। राम ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उनके साथ उनकी पत्नी मौजूद है। लक्ष्मण ने खुद को दास बताते हुए मना कर दिया। क्रोधित शूपर्णखा सीता पर हमला करना चाह रही थी तभी लक्ष्मण ने उसके नाक कान काट दिये। कटी नाक लेकर वह खर, दूषण के पास पहुंची दोनो को राम ने मार दिया। रावण के सभा में पहुंचकर उसने बताया कि वह सीता को लंका लाना चाह रही थी तभी वनवासी ने उसकी यह हालत करने के साथ खर और दूषण को भी मार दिया। रावण ने अपने मामा मारीच को सीता का हरण में सहायता के लिए कहा न करने पर मार देने की धमकी दिया। मारीच स्वर्ण मृग बन सीता के सामने गया। सीता ने उसकी छाल लाने के लिए राम से कहा। राम मारीच के पीछे चले तो लुका छुपी करते वह दूर चला गया जैसे ही राम ने वाण चलाया वह हाय लक्ष्मण हाय लक्ष्मण की पुकार करने लगा। यह आवाज जैसे ही सीता ने सुना लक्ष्मण को जबरदस्ती सहायता के लिए भेज दिया। 

लक्ष्मण के जाने पर रावण कुटी में पहुंचता है और भिक्षा की मांग करता है। सीता लक्ष्मण द्वारा बनायी गयी रेखा के भीतर से भिक्षा देने के का प्रयास करती है तो वह यह कहते हुए मना कर देता कि बंधी भिक्षा नहीं चाहिए। सीता रेखा पार कर जैसे ही बाहर निकलती है रावण उनका हरण कर लेता है। सीता को रोते देख जटायू रावण से युद्ध करते हुए घायल हो जाते है। सीता को ढूढते हुए राम जटायू के पास पहुंचे तो उन्होने पूरा वृतांत बताया। जटायू का उद्धार कर राम शबरी आश्रम पहुंचे जहां माता शबरी ने श्रीराम को चख चख कर मीठे बेर खिलाने लगी। माता शबरी का उद्धार करने के बाद दोनो भाई ऋषिमूक पर्वत की तरफ बढ़े। दोनो भाइयों को अपनी तरफ आते देख सुग्रीव भयभीत हो गये हनुमान को भेद जानने के लिए भेजा। वे ब्राम्हण भेष में राम लक्ष्मण के पास पहुंचे। अभिवादन के बाद हनुमान को जैसे ही प्रभु श्रीराम के होने के जानकारी हुई तो उन्होने अपनी भूल पर क्षमा मागते हुए सुग्रीव के पास ले जाकर मित्रता करायी। सुग्रीव को देख राम ने उनके दुखी होने का कारण पूंछा तो उन्होने ने अपने भाई बालि के बारे में बताया जो उनके जान का दुश्मन बन गया है। राम ने सुग्रीव से कहा कि वे बालि को मार उन्हे चिंता से मुक्त कर देंगे। राम के कहने पर सुग्रीव ने बालि को ललकारा। बालि द्वारा बुरी तरह घायल होने के बाद सुग्रीव भाग कर राम के पास पहुंचे तो उन्होने दोनो भाइयो के एक रूप होने के कारण भ्रम होने के बारे में बताया। दुबारा अपनी माला देकर पुनः भेजा दोनो भाइयो के युद्ध के दौरान राम ने बालि का वध कर दिया। बालि को अत्यधिक पीड़ा में देख राम उसके पास पहुंचे तो उसने मारने का कारण पूछा। राम ने कहा जो भी माता, बहन, पुत्र की पत्नी व छोटे भाई की स्त्री पर कुदृष्टि करता है उसको मारने में कोई पाप नहीं है। मरणासन बालि ने अपने पुत्र अंगद को राम को सौप दिया। राम ने लक्ष्मण के द्वारा सुग्रीव को राजा व अंगद को युवराज बनवा दिया।

      इस मौके पर मुख्य रूप से चन्द्रभान चौबे, रामगोपाल दुबे, राम निरंजन, बाबूराम, काशीराम, सुर्यभान, राजमणि, रामबास, दिनेश, रमेश, जीतेन्द्र, सुरेन्द्र प्रकाश आदि लोग मौजूद रहे।

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