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मनुष्य योनि में जन्मा प्राणी विवेक से सम्पन्न है, परन्तु प्रतिपल सुख की कामना करता ही रहता है, क्योंकि वह नही जानता कि सुख की कामना ही दुख का कारण है ।




 मनुष्य योनि में जन्मा प्राणी विवेक से सम्पन्न है, परन्तु प्रतिपल सुख की कामना करता ही रहता है, क्योंकि वह नही जानता कि सुख की कामना ही दुख का कारण है ।  स्वयं अपने बारे में नही जानता और संसार के बारे में जानकारी एकत्रित करता ही रहता है ।


हमारा वास्तविक स्वरूप आनन्द है जो सुख और दुख दोनो से परे है । सुख तथा दुख दोनो ही मन की अनित्य अवस्था है, इनसे निवृत्त होने पर ही आनन्द में स्थित होना सम्भव है । जो नित्य है, शाश्वत है, मौलिक है, सनातन है, ध्रुव है ।


यह बहुत उच्च कोटि का विज्ञान है जो कठोर तप कर भगवान बुद्ध ने प्राप्त किया, और अपने जीवनकाल में ही जनमानस को प्रशिक्षण देते यह घोषित कर दिया था कि इस  विद्या का लोप हो जाएगा, कालान्तर मे लगभग 2,500 वर्षों के बाद कोई सज्जन इस विद्या को पुनः जागृत कर जनमानस को प्रशिक्षित करेगा ।


भगवान बुद्ध का कथन सत्य हुआ, परमादरणीय प्रातः स्मरणीय श्री सत्यनारायण गोयनका, भारतीय मूल के माण्डले (म्यांमार) मे जन्म ले कर अपने गुरूजी से प्रशिक्षण लिया, उनकी 14 वर्षों तक सेवा करने के बाद, कृतज्ञता पूर्वक विदा ले कर भारत आने की ईच्छा जताई । सकुचाते हुए आचार्य ऋण से मुक्त होने का उपाय जानना चाहा । गुरूजी ने कहा कि यह कल्याणकारी, विपश्यना साधना मूलतः भारत की है, हम पर भारत का ऋण है । हम इसे भारत में पुनः स्थापित करें यह हमारा कर्तव्य है । तुम प्रसन्नचित्त से भारत जा रहे हो, मानव कल्याण के उद्देश्य से वहाँ इसका प्रशिक्षण शिविर लगाकर, प्रचार प्रसार करो । मुझे तुम पर विश्वास है तुम सफलता प्राप्त करोगे । यही गुरुदक्षिणा है ।


श्री सत्यनारायण गोयनका ने अपना पूरा जीवन इसका प्रशिक्षण देने में लगा दिया । वे विश्व विपश्यनाचार्य की उपाधि से विभूषित हैं । भारत के बाद विश्व के लगभग आधे से ज्यादा देशों में इसके केन्द्र स्थापित किए ।


साधक के लिए कोई आयु सीमा, या जाति-सम्प्रदाय का कोई बन्धन नही है । केवल आचार संहिता का पालन अनिवार्य है ।


इसकी साधना से आत्म साक्षात्कार होता है, चित्त निर्मल निर्विकार हो जाता है, प्रज्ञा जागृत हो उठती है । काम, क्रोध, मद, मोह तथा लोभ नष्ट हो जाते है, विषयासक्ति भंग हो जाती है, आनन्द में स्थित हो कर परमानन्द को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है ।


इसके प्रशिक्षण हेतु :


www.dhamma.org 


पर click कर प्रवेश हेतु आवेदन कर सकते हैं ।


10 दिनों का आवासीय शिविर होता है जो नि:शुल्क है, इसके केन्द्र लगभग प्रत्येक प्रान्त में में है ।


प्रशिक्षण के दौरान यह आचार्य द्वारा निर्देश दिया जाता है कि शिविर समापन के पश्चात साधक नियमित साधना करे साथ ही प्रति सप्ताह अन्य साधकों के साथ सामूहिक साधना करे ।


सामूहिक साधना के लिए एक सज्जन श्री गोपीचन्द गुप्ता, राउरकेला निवासी जो पिछले 10 वर्षों से निरन्तर साधना करते रहे हैं, उन्होने एक ध्यान साधना हाल का निर्माण कर आज स्थानीय साधकों को सुलभ करवाया जिसमें ...34.. साधकों ने परम्परागत समूह साधना सम्पन्न कर मंगल मैत्री का उद्घोष कर प्रसारण किया ।

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