डेहरी (रोहतास) से रिंटू सिंह की रिपोर्ट। ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी थे तिलौथू हाउस उर्फ तिलौथू स्टेट के राजा के नाम से जाने जाने वाले बाबू राधा राधा प्रसाद सिंह। बाबू राधा प्रसाद सिंह का जन्म 8 सितंबर 1867 को रोहतास दुर्ग के अंतिम शासक राजा शहमल के छठी पीढ़ी में देवनारायण सिन्हा के घर तिलौथू में हुई थी ।बाबू राधा प्रसाद सिंह के 6 वर्ष के अल्पायु में ही उनके पिता के निधन हो गई तथा पूर्व की परंपरा के अनुसार बच्चों के शिक्षा दीक्षा घर पर ही रहकर लेने के परंपरा थी इसके बाद प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनकी पढ़ाई छोड़ा दी गई थी परंतु उनकी जिद के आगे एक न चली, उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए अपने घर से चुपके से डेहरी रेलवे स्टेशन पर आ गए परंतु परिजनों द्वारा उनका पीछा करते हुए उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने का आश्वासन देकर घर लौटा लाया गया था। इसके बाद उन्हे आरा जिला स्कूल के शिक्षकों द्वारा घर पर अंग्रेजी एवं अन्य विषयों की शिक्षा दी गई । उसके बाद आगे की शिक्षा के लिए उन्हें पटना सिटी के गवर्नमेंट स्कूल में दाखिला कराया गया। कोलकाता यूनिवर्सिटी से उन्होंने मैट्रिकुलेशन की प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की, उसके बाद वहीं से उन्होंने बी ए की परीक्षा पास की,फिर बी एल वकालत की परीक्षा पास की, परंतु घर की परिस्थिति एवं तिलौथू से लगाव ने उन्हें अपने गांव तिलौथू लाया जहां उन्होंने तिलौथू को शिक्षा के क्षेत्र में विकसित करने के लिए अपने घर में ही 1932 में तिलौथू हाई स्कूल की स्थापना कराई साथ ही बड़े शहरों के तर्ज पर गांव के लोगों को सामूहिक रूप से शैक्षणिक,आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं संस्कृति क्षेत्र में अग्रसर करने के लिए 1932 में ही तिलौथू रूरल ऑलिफ्ट क्लब की स्थापना की थी। जो शायद उस समय बिहार के बहुत बड़े-बड़े शहरों में भी क्लब की स्थापना नहीं हो पाई थी। यहां तक की उन्होंने चिकित्सा की लचर व्यवस्था होने और सड़क की उत्तम व्यवस्था नहीं होने के कारण कुछ दिनों तक रोहतास जिला परिषद से संचालित एक अस्पताल का संचालन अपने घर में ही कुछ वर्षों तक कराया फिर बाद में उन्होंने अपनी निजी भूमि देकर वहां जिला परिषद द्वारा सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया । इतना ही नहीं उन्होंने तिलौथू को व्यवसाय का केंद्र बनाने के लिए पूर्व से इस क्षेत्र का बाजार सरैया गांव में होने के बाद भी उन्होंने तिलौथू के गोला बाजार में व्यापारियों को बहुत तरह का सुविधा, बिक्री, सुरक्षा की गारंटी देकर लाना शुरू किया और स्वयं भी सामानों की बिक्री नहीं होने पर खरीदारी कर लेते थे और व्यापारियों के साथ बैठकर कपड़ा तक भी बेचा। तिलौथू में छोटी रेलवे लाइन का स्टेशन बनवाया। तिलौथू गोला बाजार में उस समय कई बंगाली एवं अन्य मारवाड़ी व्यवसायि भी आए। उन्होंने पूरे जीवन में कभी भी अपने नाम से कोई संस्था नहीं बनाई, जबकि तिलौथू में सैकड़ो एकड़ जमीन उनके द्वारा कई शैक्षणिक एवं अन्य सामाजिक संस्थाओं को दिया गया है। एक जमींदार परिवार से होते हुए भी उन्होंने हमेशा रैयतों ,किसानों और मजदूरों की सुख सुविधा और उनके चिकित्सा, शिक्षा व्यवस्था को उत्तम करने की दिशा में अग्रसर होकर काम करते रहे । उसे जमाने में भी कहा जाता है कि उन्होंने अपने परिवार में अपने पांच बेटों के साथ एक पुत्री को भी बराबर का हिस्सा दिया। उन्होंने कभी भी अपने परिवार में सभी की शादी दहेज रहित की। लगभग 100 वर्ष पुरानी उनकी इन कामों पर नजर डालने पर पता चलता है कि स्वर्गीय राधा बाबू काफी दूरदर्शी थे। उनके मृत्यु उपरांत हाई स्कूल के परिसर में उनकी प्रतिमा लगाई गई। वहीं तिलौथू के लोगों ने उनके परिवार से जिद कर उनके नाम पर तिलौथू में 1978 में राधा शांता महाविद्यालय की स्थापना कराई। राधा प्रसाद सिंह उनकी पत्नी शांता देवी के नाम से महाविद्यालय की स्थापना हुई है। इस संबंध में राधा शांता महाविद्यालय तिलौथू रोहतास के प्राचार्य डॉ अशोक कुमार सिंह ने बताया कि वैसे शख्सियत की आज 167 वीं जन्म जयंती समारोह राधा शांता महाविद्यालय तिलौथू के परिसर में प्रत्येक वर्ष की भर्ती इस वर्ष भी भव्य रूप में मनाई जा रही है। जहां क्षेत्र भर से पहुंचे कई गणमान्य लोग उनकी तैल चित्र पर पुष्पांजलि कर उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हैं।
1916 में बैरिस्टरी पास करने के बाद भी तिलौथू को विकसित करने में पूरी जीवन लगा दी बाबू राधा प्रसाद सिंह।
byDR AMIT KUMAR SRIVASTAVA/EDITOR-IN-CHIEF.
-
0
Tags
#e-News
