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बिहार कोकिला के निधन से छठ की आवाज हुई खामोश.. 72 की उम्र में दिल्ली के एम्स में हुआ निधन।



प्रधान संपादक डॉ अमित कुमार श्रीवास्तव की कलम से। .....

 

एटीएच  न्यूज़  11 :-लोकगायिका शारदा सिन्हा के निधन की खबर से उनके गांव राघोपुर प्रखंड के हुलास में गहरा शोक छा गया है. 72 वर्ष की आयु में उनके जाने की सूचना से गांव के लोग परेशान हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं. छठ पर्व के मौके पर शारदा सिन्हा के निधन की खबर ने लोगों को खासा दुखी कर दिया है, क्योंकि उनके गीतों के बिना छठ का पर्व अधूरा सा लगता है. गांव के लोग उन्हें "छठ की आवाज" मानते थे और उनके गाने हर साल इस त्योहार की विशेषता बन जाते थे.
आपको जानकारी के लिए बता दें कि इस दुखद घटना पर प्रसिद्ध गायिका मैथिली ठाकुर ने भी गहरा शोक व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि शारदा सिन्हा छठ पर्व का पर्याय बन चुकी थीं और उनके बिना इस त्योहार की कल्पना मुश्किल है. मैथिली ठाकुर ने शारदा सिन्हा को बिहार की बेटियों के लिए एक प्रेरणा बताया और कहा कि उन्होंने बचपन से ही उन्हें सुनते और उनसे सीखते हुए अपनी कला को निखारा. साथ ही शारदा सिन्हा का गांव से गहरा लगाव रहा था और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी हुलास गांव में ही प्राप्त की थी. उनके प्रति गांव वालों की भावनाएं गहरी हैं और सभी उनकी दीर्घायु की कामना कर रहे थे. उनके पैतृक आवास पर अब नए मकान बने हैं, जहां उनके भाई रहते हैं. शारदा सिन्हा की बीमारी की खबर सुनते ही उनके परिजन दिल्ली एम्स में उनसे मिलने पहुंच गए थे.
इसके अलावा 1 अक्टूबर 1952 को सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी की शुरुआत 1974 में एक भोजपुरी गीत से की थी. हालांकि, प्रसिद्धि पाने में उन्हें कुछ समय लगा. 1978 में उनके छठ गीत "उग हो सुरुज देव" ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया. इसके बाद उन्होंने 1989 में बॉलीवुड में भी अपना कदम रखा और "कहे तोसे सजना तोहरे सजनियाट" जैसे गीत से बड़ी सराहना हासिल की. शारदा सिन्हा का नाम और उनके गाए छठ गीत आज भी इस पर्व के हर उत्सव में गूंजते हैं. उनके निधन से संगीत की दुनिया में एक अपूरणीय क्षति हुई है, और सभी लोग उनके योगदान को हमेशा याद करेंगे.

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