डेहरी से रिंटू सिंह की रिपोर्ट।।
ATHNEWS 11 :-आत्मोद्धार का सर्वश्रेष्ठ साधन है भक्ति। लेकिन आज की भक्ति अज्ञान , आडम्बरयुक्त जड़ भक्ति है। जड़ भक्ति से ऊपर उठकर भक्ति के चेतन पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता है।अधिकांश व्यक्तियों का जीवन अविद्या एवं अंधकार में व्यतीत हो रहा है। विहंगम योग ही विशुद्ध चेतन भक्ति है। जिसमे साधक संपूर्ण विकारों को त्याग कर आतंरिक शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति कर लेता है।
उक्त बातें सन्त प्रवर विज्ञान देव जी महाराज ने विहंगम योग समारोह के यज्ञ-हवन में उपस्थित हजारों भक्तों के मध्य व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि आज योग एक विश्व विश्रुत शब्द तो बन गया है लेकिन इसे केवल आसन और प्राणायाम की परिधि में ही आबद्ध किया जा रहा है। इसके मूल स्वरूप आत्मज्ञान व परमात्मज्ञान की आंतरिक साधना की प्रक्रिया गौण होती जा रही है। विहंगम योग एक संपूर्ण योग है। जिसके मध्यम से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आत्मिक विकास संभव है।
बुधवार को 11 बजे से 5100 कुंडीय विश्वशांति वैदिक यज्ञानुष्ठान के पूर्णाहुति पर उपस्थित यज्ञानुरागियों को संबोधित करते हुए संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने कहा कि यज्ञ श्रेष्ठतम शुभ कर्म है। यज्ञ का अर्थ है त्याग भाव । अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है। अग्नि को बुझा सकते हैं, नीचे झुका नहीं सकते। वैसे ही हमारा जीवन भी ऊध्र्वगामी हो, श्रेष्ठ और पवित्र पथ पर, कल्याणकारी पथ पर निरंतर गतिशील रहे। हमारे अंतःकरण में ज्ञान की अग्नि जलती रहे, शरीर में कर्म की अग्नि, इन्द्रियों में तप की अग्नि जलती रहे। श्रेष्ठ विचारों की, सद्विचारों की अग्नि प्रज्ज्वलित रहे। अशुभ नष्ट होता रहे। यज्ञ की अग्नि यही संदेश देती है। उन्होंने कहा कि आज हो रहे ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने का यह एक ससक्त माध्यम है। इस पर सभी पर्यावरण चिंतको का ध्यान अवश्य होना चाहिए। प्राचीन काल मे ऋषि आश्रमों में प्रत्येक दिन यज्ञ की परंपरा थी।कार्यक्रम समन्वयक अमरंजय दुबे ने बताया कि इस पावन अवसर पर प्रतिदिन निःशुल्क योग, आयुर्वेद, पंचगव्य, होम्योपैथ आदि चिकित्सा पद्धतियों द्वारा कुशल चिकित्सकों के निर्देशन में रोगियों को चिकित्सा परामर्श के साथ चिकित्सा की भी व्यवस्था की गई है।