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5100 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ की सुगन्धि से सुगन्धित हुआ वातावरण।




                 डेहरी से रिंटू सिंह की रिपोर्ट।


ATHNEWS 11 :-महर्षि सदाफल देव आश्रम कटार, डेहरी के पवित्र प्रांगण में विहंगम योग संत समाज के त्रिदिवसीय समारोह 5100 कुण्डीय महायज्ञ एवं सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज के अमृतवाणी के साथ विधिवत समापन हुआ। इस महायज्ञ में अनेक राज्यों से आए हजारों भक्त-शिष्यों ने अपनी व्यष्टिगत एवं समष्टिगत कामनाओं की पूर्ति के निमित्त यज्ञ-कुण्ड में आहुतियाँ प्रदान कीं। 

आचार्य श्री धर्मचंददेव जी महाराज के जन्म जयंती के समापन अवसर पर विभिन्न राज्यों से आए हजारों भक्तों को संबोधित करते हुए  सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज ने कहा कि आत्मोद्धार का सर्वश्रेष्ठ साधन है भक्ति। लेकिन आज की भक्ति अज्ञान एवं आडम्बरयुक्त जड़भक्ति है। जड़भक्ति से ऊपर उठकर भक्ति के चेतन पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता है। अधिकांश व्यक्तियों का जीवन अविद्या एवं अंधकार में व्यतीत हो रहा है। विहंगम योग ही विशुद्ध चेतन भक्ति है, जिसमें साधक संपूर्ण विकारों को त्यागकर आतंरिक शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति कर लेता है। 

 उन्होंने कहा कि जैसे कमल का पत्ता जल से ही उत्पन्न होता है और जल में ही रहता है पर वह जल से लिप्त नहीं होता। ऐसे ही एक विहंगम योगी संसार में रहते हुए संसार के कार्यों को करते हुए भी इससे निर्लिप्त रहता है। 

समारोह के समापन पर भक्तों को संदेश देते हुए संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने कहा कि हमारा अज्ञान ही हमारे दुखों का कारण है। कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं। अच्छाइयां - बुराइयां सबके भीतर हैं। हमे दुर्बलताओं, कठिनाइयों से घबराना नहीं है। उन कठिनाइयों को दूर करने की जो प्रेरणा, जो शक्ति, जो सामर्थ्य है वह अध्यात्म के आलोक से, स्वर्वेद के स्वर से एक साधक को अवश्य ही प्राप्त होता है। क्योंकि हमारे भीतर अंतरात्मा रूप से परमात्मा ही तो स्थित है। 


उन्होंने बताया कि विहंगम योग का ध्यान आंतरिक शांति का मार्ग प्रशस्त करता है।

           जन्म जयंती समारोह में आये हजारों भक्त-शिष्यो ने स्वामीजी जी के समक्ष अपने दोनों हाँथ उठाकर विधिवत सेवा, सत्संग, साधना करने का संकल्प लिया, साथ ही विहंगम योग के प्रमुख सद्ग्रन्थ स्वर्वेद को जन-जन तक पंहुचाने तथा स्वर्वेद महामंदिर के ही समीप विहंगम योग के प्रणेता सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज के 135 फिट से भी अधिक ऊँची प्रतिमा के निर्माण का भी संकल्प लिया । 

“हम सबका संकल्प महान ! स्वर्वेद महामंदिर निमार्ण !!”

“विहंगम योगी करे पुकार ! अध्यात्म मूर्ति हो तैयार !!”

“संकल्प दिव्य निभाएंगे ! हम मूर्ति भव्य बनायेंगे !!”

संकल्प दिव्य निभाएंगे! स्वर्वेद घर-घर पहुंचाएंगे ।

इस प्रकार के दिव्य उद्घोष से पूरा परिसर गुंजायमान हो उठा और सबके अन्दर अपने गुरुदेव के प्रति श्रद्धा और आदर का भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था। 

कार्यक्रम का समापन वंदना, आरती एवं शांति पाठ के द्वारा किया गया। समापन के पश्चात् सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी एवं संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी के दर्शन के लिए अनुयायियों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। तीन दिनों तक बहती रही स्वर्वेद की अमृत ज्ञान गंगा। सभी भक्त दर्शन लाभ प्राप्त कर अपने गंतव्य स्थान को चलते रहे। 


      इस आयोजन में प्रतिदिन निःशुल्क योग, आयुर्वेद, पंचगव्य, होम्योपैथ आदि चिकित्सा पद्धतियों द्वारा कुशल चिकित्सकों के निर्देशन में रोगियों को चिकित्सा परामर्श के साथ चिकित्सा की भी  व्यवस्था की गई थी। 


    इस विशाल कार्यक्रम में  उत्तर प्रदेश के साथ  गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, दिल्ली ,राजस्थान हरियाणा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, असम, तमिलनाडु आदि प्रदेशों के साथ-साथ अनेक राज्यों के हजारों की संख्या में विहंगम योग के अनुयायी साधक पहुचकर ब्रह्मविद्या के दिव्य ज्ञान से ओत-प्रोत हुए ।

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